पैसे लेकर भूल जाते हैं एनसीआर के बिल्डर, देश में पहला नंबर, 6 लाख लोगों के पैसे अंटी

नई दिल्ली : अगर आप दिल्ली एनसीआर में रियल एस्टेट में पैसे इनवेस्ट करने की सोच रहे हैं तो कतई न करें. यहां के बिल्डर बेहद लापरवाह हैं. वो आपके पैसे तो ले लेते हैं लेकिन सप्लाई देने के टाइम पर चक्कर लगवाते रहते हैं. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में छह लाख से ज्यादा घर ऐसे हैं जिनकी डिलिवरी ज़रूरत से ज्यादा ही लेट हो चुकी है. इनमें करीब दो तिहाई मकान की डिलिवरी की समय-सीमा तो दो साल से भी ज्यादा पहले ही पार हो चुकी है. रियल एस्टेट सेक्टर की रेटिंग और रिसर्च करनेवाली एक कंपनी ने ये आंकड़े जुटाए हैं.

रियल एस्टेट रिसर्च फर्म लाइसेस फोरस के मुताबिक, एनसीआर में लटके हाउजिंग प्रॉजेक्ट्स का बड़ा हिस्सा नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गुड़गांव में है. देरी से डिलीवरी देने वाले बिल्डर देश के 43 शहरों में हैं इनमें एनसीआर टॉप पर है जबकि मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन लिस्ट में दूसरे नंबर पर है जहां 1.31 लाख घरों की डिलिवरी 2 से ज्यादा वर्षों से लटकी पड़ी है.

सरकार ने मांगी लटके प्रॉजेक्ट्स की जानकारी

आंकड़े के मुताबिक, देशभर में 2 वर्ष से ज्यादा वक्त से लटका प्रत्येक तीसरा घर एनसीआर में है जबकि मुंबई रीजन में यह आंकड़ा एक-चौथाई का है. आंकड़े बताते हैं कि डिलिवरी की समय-सीमा खत्म होने के बाद भी 29.23 लाख घरों का निर्माण कार्य चल ही रहा है. इनमें आधे तो समय-सीमा से एक साल या ज्यादा वक्त पार कर चुके हैं. एनसीआर और मुंबई के अलावा चेन्नै, पुणे और बेंगलुरु में बड़ी संख्या में घरों की डिलिवरी दो या ज्यादा वर्षों से लटकी पड़ी है.

ये आंकड़े तब सामने आए हैं जब रियल एस्टेट डिवेलपरों की लॉबीज निर्माणाधीन घरों को रियल एस्टेट रेग्युलेशन ऐक्ट (रेरा) से बाहर रखवाने में ताकत झोंक रही है. लाइसेस फोरस के एमडी पंकज कपूर ने बताया, ‘मौजूदा स्थिति मार्केट में निवेश नहीं होने, डिवेलपरों की ओर से क्षमता से ज्यादा बुकिंग करने और कुछ इलाकों में सभी निर्माण कार्यों को रोकने जैसे नियामकीय हस्तक्षेपों से पैदा हुई है.’