पांव धोने से पाप नहीं छिपते, ये है आपके दलित प्रेम का कच्चा चिट्ठा साहेब


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मोदी जी आपके राज में ये सब हुआ. दलितों की दुर्गति हुई लेकिन आप ने एब बार भी मुंहन नहीं खोला. किसी को डाटा नहीं. किसी के खिलाफ एक्शन नहीं. आपके राज्य में रिकॉर्ड दलित उत्पीड़न हुआ और आप आज पांव धोकर माफी पाना चाहते हैं.

मोदी ने आज इलाहाबाद में गंगा स्नान के बाद सफाइ कर्मियों के पैर धोए. इसके साथ ही देश भर में मोदी की तुलना दलित प्रेमी नेता के तौर पर होने लगी लेकिन पिछले 5 साल का रिकॉर्ड मोदी सरकार की दलितों के प्रति बेरुखी से भरा पड़ा है. शायद ये इतिहास का दलित उत्पीड़न के मामले में सबले काला समय रहा है.

आखिरी साल को छोड़ भी दें तो मोदी सरकार के शुरुआती चार साल के आंकड़े बेहद अफसोसनाक है. ये लेख थोड़ा बड़ा है लेकिन बड़ा दस्तावेज़ भी है.

मोदी के शुरुआती चार सालों में एक के बाद एक दलित उत्पीड़न की ऐसी घटनाएं घटीं, जिसने मोदी सरकार के ‘सबका साथ, सबका विकास’ वाले दावे की पोल खोल कर रख दी.

हर 15 मिनट में एक दलित हो रहा उत्पीड़न का शिकार

सबसे पहले तो सरकारी आंकड़ों पर ही नजर डाल लेते हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों को ही सच मानें तो इन चार वर्ष में दलित विरोधी हिंसा के मामलों में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है.

साल 2014 में अनुसूचित जाति के साथ अपराधों के 40,401 मामले, 2015 में 38670 मामले व 2016 में 40,801 मामले दर्ज किए गए. आंकड़ों के मुताबिक, इस दौरान हिंदुस्तान में हर 15 मिनट में किसी न किसी दलित के साथ कोई न कोई आपराधिक घटना घटी.

BJP शासित राज्यों में दलित हैं सर्वाधिक उत्पीड़न के शिकार

NCRB के आंकड़ों से जो चौंकाने वाली बात निकलकर आई है, वह ये कि बीते चार वर्षों के दौरान देश के जिन राज्यों में दलितों का सर्वाधिक उत्पीड़न हुआ, उन राज्यों में या तो BJP की सरकार है या BJP के गठबंधन वाली सरकार. बात करें दलित उत्पीड़न में सबसे आगे रहे

राज्यों की तो मध्य प्रदेश दलित उत्पीड़न में सबसे आगे रहा. 2014 में MP में दलित उत्पीड़न के 3,294 मामले दर्ज हुए, जिनकी संख्या 2015 में बढ़कर 3,546 व 2016 में 4,922 तक जा पहुंची. देश में दलितों पर हुए आपराधिक मामलों में से 12.1 फीसदी मामले अकेले MP में घटे.

दलितों पर अत्याचार के मामले में BJP शासित राजस्थान दूसरे स्थान पर रहा. हालांकि यहां उत्पीड़न के मामलों में कमी जरूर देखने को मिली है. राजस्थान में 2014 में दलित उत्पीड़न के 6,735 मामले, 2015 में 5,911 मामले व 2016 में 5,136 मामले दर्ज हुए.

इसके बाद दलित उत्पीड़न के मामले में तीसरे नंबर पर रहा बिहार, जहां बीजेपी व जदयू के साझेदारी की गवर्नमेंट है. बिहार में 2016 में अनुसूचित जाति के लोगों पर अत्याचार के 5,701 मामले दर्ज हुए.

सबसे हैरान करने वाला रहा चौथे नंबर पर गुजरात का रहना. 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने जिस राज्य को देश के सामने मॉडल स्टेट की तरह पेश किया, वहां दलितों की स्थिति चिंताजनक है.

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक गुजरात में 2014 में दलित उत्पीड़न के 1,094 मामले, 2015 में 1,010 मामले व 2016 में 1,322 मामले दर्ज किए गए. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2016 में अनुसूचित जाति पर हमलों का राष्ट्रीय औसत जहां 20.4 प्रतिशत था वहीं गुजरात का भाग 32.5 प्रतिशत रहा.

दलित उत्पीड़न में योगी का UP निकला सबसे आगे

वास्तव में यह एक ऐसा आंकड़ा है, जिसमें कोई भी राज्य आगे नहीं आना चाहेगा. पूरे देश में बीते चार वर्षों के दौरान दलित उत्पीड़न के मामलों में तो बढ़ोतरी देखी ही गई, उत्तर प्रदेश इस मामले में कुछ ज्यादा ही आगे निकला. दरअसल 2016 में UP दलित उत्पीड़न के मामले में देशभर में सबसे ऊपर निकल गया.

साल 2016 में अनुसूचित जाति पर हमलों के मामले में यूपी (10,426) शीर्ष पर रहा. यहां दलित स्त्रियों के साथ बलात्कार के 1065 मामले दर्ज हुए, जिसमें से अकेले लखनऊ में 88 घटनाएं घटी हैं. उसमें भी 43 घटनाएं स्त्रियों से दुष्कर्म की रहीं.

काम नहीं आ रहा दलित के घर भोजन का दांव

दलित समुदाय की BJP के प्रति व्यापक नाराजगी के माहौल को भांपते हुए मोदी सरकार ने दलितों को रिझाने के उद्देश्य से दलितों के घर भोजन करने का बाकायदा एक अभियान शुरू किया. दलितों को रिझाने के लिए भाजपा ने ग्राम स्वराज अभियान का सहारा लिया.

14 अप्रैल से 5 मई तक चले इस अभियान में भाजपा सरकार के मंत्री और नेता दलितों की नब्ज टटोलने दूरदराज के गांव पहुंचे, रात में चौपाल लगाई लेकिन लाव-लश्कर के साथ दलितों के घर भोजन करने की कवायद ने विवादों को ही जन्म दिया.

अब चाहे बिहार के बेगूसराय में केंद्रीय मंत्री एसएस अहलूवालिया का बाहर से खाना मंगाकर दलित के घर खाने का मामला हो, चाहे यूपी सरकार के ही गन्ना विकास मंत्री सुरेश राणा द्वारा दलित परिवार के यहां हलवाइयों के हाथ का बना पालक पनीर, मखनी दाल, छोला, रायता, तंदूर, कॉफी, रसगुल्ला और मिनरल वाटर का लुत्फ उठाना.

दलितों के घर मोदी के मंत्री भोजन राजनीति तो कर रहे थे, लेकिन कई बार उनकी उट-पटांग बयानबाजियों ने खेल उल्टा कर दिया. योगी सरकार में मंत्री अनुपमा जायसवाल ने जहां दलितों के घर रातभर मच्छर काटने की बात उठाई, वहीं योगी सरकार में ही एक अन्य मंत्री राजेंद्र प्रताप ने खुद की तुलना भगवान राम के साथ करते हुए कहा दिया कि राम ने भी शबरी के जूठे बेर खाए थे.

यहां तक कि मोदी सरकार में मंत्री सावित्री बाई फुले ने तो दलितों के घर भोजन की राजनीति को दलितों का अपमान तक कह डाला.

आरक्षण पर आधिकारिक तंत्र कुछ तो प्रचार तंत्र कुछ

दलितों को लेकर मोदी सरकार चाहे जितने दावे कर ले, लेकिन वह देश के दलित समुदाय का पूर्ण विश्वास अब तक हासिल नहीं कर पाई है. दरअसल इसके पीछे सिर्फ कथनी-करनी का ही फर्क नहीं है, बल्कि देश की नई राजनीति को प्रभावित करने वाली सोशल मीडिया का भी बहुत बड़ा हाथ है. बिहार विधानसभा चुनाव से लेकर कर्नाटक विधानसभा चुनाव तक समय समय पर विपक्षी दल मोदी सरकार द्वारा दलितों और अन्य पिछड़ा वर्ग को मिलने वाला आरक्षण खत्म किए जाने का डर दिखाते रहे हैं.

वास्तव में दलितों को विपक्ष के इस दावे में कुछ हद तक सच्चाई भी नजर आती है, क्योंकि सोशल मीडिया पर इस तरह की बातें लगातार उठती रही हैं, जिसमें आरक्षण को देश के पिछड़ेपन की बड़ी बुराई के रूप में प्रदर्शित किया जाता रहा है. सोशल मीडिया पर वायरल होने वाले इन संदेशों में आरक्षण के बहाने दलितों और अन्य पिछड़े समुदाय को उनके बौद्धिक पिछड़ेपन के लिए निशाना बनाया जाता है.

एकतरफ तो खुद प्रधानमंत्री मोदी कई बार कह चुके हैं कि कोई भी इस देश से आरक्षण को खत्म नहीं कर सकता, लेकिन सोशल मीडिया पर उनका प्रचार तंत्र लगातार आरक्षण के खिलाफ जनमानस बनाने में लगा दिख रहा है. अब हाल की ही एक घटना को ले लें, जब प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एक निर्माणाधीन पुल की तीन बीमें गिरने से दर्जन भर के करीब लोगों की मौत हो गई. इसके बाद सोशल मीडिया पर इस तरह के संदेश प्रसारित हुए कि ‘जिस देश में आधे इंजीनियर आरक्षण से बनते हों, उस देश में निर्माणाधीन पुल के गिरने पर क्या आश्चर्य’.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से देशभर के दलित नाराज

सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 20 मार्च को दलित एट्रॉसिटीज एक्ट में बड़ा बदलाव करने का निर्देश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दलित एट्रॉसिटीज एक्ट के तहत FIR दर्ज करने से पहले तफ्तीश की जाए और प्रारंभिक जांच में शिकायत वाजिब पाए जाने के बाद ही एफआईआर दर्ज की जाए. सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही दलित एट्रोसिटीज ऐक्ट में बदलाव की बात भी कही.

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को दलित उत्पीड़न कानून को कमजोर करने वाला माना गया. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लेकर भी मोदी सरकार की यह कहकर आलोचना की गई कि सरकार ने कोर्ट के सामने ठोस तर्क नहीं रखे, जिससे सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा निर्देश सुनाया. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर देशभर में दलित समुदाय भड़क उठा और अप्रैल में दर्जन भर राज्यों में हिंसा की आग भड़क उठी.

दलितों का यह आंदोलन हिंसक हो उठा और कई दिनों तक चला. दलितों के इस आंदोलन में देश के विभिन्न हिस्सों से दर्जन भर से ज्यादा लोगों की मौत की खबर आई. दलितों के इस आंदोलन ने मोदी सरकार की चूलें हिला दीं. और आखिरकार केंद्र सरकार अब अध्यादेश के जरिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निरस्त करने पर विचार कर रही है.

अंबेडकर की मूर्तियां बन रहीं निशाना

मणिपुर में भाजपा की सरकार बनने के बाद लेनिन की मूर्ति का तोड़ा जाना अपने आप में एक राजनीतिक घटना बन गया. लेनिन की मूर्ति का टूटना फिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का आना और अंबेडकर को लेकर भाजपा की बदली राजनीति. इन सबका नतीजा यह रहा कि देश के विभिन्न हिस्सों से अंबेडकर की प्रतिमाएं टूटने की खबरें आने लगीं.

इसे सवर्णों ने दलितों के खिलाफ बड़े राजनीतिक संदेश के रूप में इस्तेमाल किया. अंबेडकर की मूर्तियों का टूटना भी मोदी सरकार के गले की हड्डी बन गई. जगह-जगह अंबेडकर की मूर्ति की रक्षा के लिए या तो पुलिसकर्मी तैनात किए जाने लगे या अंबेडकर की मूर्ति को लोही की जाली में ताला लगाकर सुरक्षित किया गया.

दलित उत्पीड़न पर प्रशासन भी संवेदनहीन

वैसे तो हमेशा से दलितों के खिलाफ उत्पीड़न को एक सामाजिक समस्या के रूप में देखा गया और इसके निराकरण के लिए सरकारें परोक्ष रास्ते अपनाती रहीं. लेकिन बीते चार वर्षों के दौरान कुछ ऐसे वाकये हुए, जिनसे ऐसा लगने लगा कि अब यह सामाजिक रूढ़ि से आगे बढ़कर सरकारी उत्पीड़न का रूप ले चुका है. क्योंकि अधिकतर दलित उत्पीड़न के मामलों में प्रशासनिक अमले की संवेदनहीनता निकलकर सामने आई है.

अब चाहे वह उत्तर प्रदेश के कासगंज में दलित दूल्हे की बारात को सवर्णों की बस्ती से निकलने की इजाजत न देने का फैसला हो या मध्य प्रदेश के उज्जैन में दलितों को बारात की तीन दिन पहले से सूचना देने का निर्देश. देश के विभिन्न हिस्सों से दलित दूल्हे या दलितों की बारात के साथ सवर्णों की बदसलूकी के मामले लगातार सामने आते रहते हैं.

अपने ही दलित मंत्री आए विरोध में

मोदी सरकार के लिए दलित उत्पीड़न के मुद्दे पर तब सर्वाधिक मुसीबत का सामना करना पड़ा, जब उसके ही कई दलित मंत्रीपार्टी के खिलाफ उठ खड़े हुए. इटावा से भाजपा के दलित सांसद अशोक दोहरे ने आरोप लगाया कि एससी-एसटी ऐक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आड़ में दलितों का उत्पीड़न किया जा रहा है.

राबर्ट्सगंज से सांसद छोटे लाल खरवार, नगीना से सांसद यशवंत सिंह भी भाजपा सरकार के कामकाज पर उंगली उठा चुके हैं. 2014 में यूपी की सभी सुरक्षित लोकसभा सीटों पर मिली जीत और 2017 के विधानसभा चुनाव में 80 फीसदी से अधिक सुरक्षित सीटें जीतने वाली भाजपा को अपने ही दलित सांसदों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है.

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