गंभीर हो चला है जस्टिस लोया की मौत का मामला, न्याय पालिका से उठे गुस्से के स्वर

नई दिल्ली :  जस्टिस लोया की मौत अब मोदी सरकार के लिए परेशानियों का 2019 लाने के करीब है. कारवां मैगजीन के खुलासे के बाद नॉकिंग न्यूज ने इस मसले को उठाया उसके बाद रवीश कुमार ने आवाज बुलंद की. अब ये आवाज़ हवा में नहीं रही. मामला बढ़ चुका है और इस मौत की निष्पक्ष जांच होना पक्का लगने लगा है. धीरे धीरे पूरी न्यायिक बिरादरी इस बात को लेकर मुखर हो गई है.

जस्टिस शाह ने आवाज़ बुलंद की

दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और विधि आयोग के अध्यक्ष एपी शाह ने भी लोया की मौत की जांच की मांग की है. द वायर  के साथ इंटरव्यू में जस्टिस एपी शाह ने इन दोनों ही मुद्दों पर चिंता जताई है. उन्होंने कहा, ‘यह ज़रूरी है कि हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस स्वयं इस मामले का संज्ञान लें और यह फैसला करें कि जांच होनी चाहिए या नहीं. क्योंकि अगर इन आरोपों की जांच नहीं कि गई तो ये न्यायपालिका की साख पर कलंक लगने जैसा होगा.’

जस्टिस शाह ने कहा कि न्यायपालिका में लोगों का विश्वास बनाए रखने के लिए ऐसा होना ज़रूरी है. लोया को एक ईमानदार और सच्चा जज बताते हुए जस्टिस शाह ने कहा, ‘परिवार द्वारा लगाये गये आरोपों की जांच न करना न्यायपालिका, खासकर निचले कैडर के लिए बेहद गलत संकेत होगा.’

मेडिकल कॉलेज रिश्वत मामले की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि हाल ही में न्यायपालिका पर कई गंभीर आरोप लगे हैं. जनता का न्याय व्यवस्था में भरोसा बनाए रखने के लिए ज़रूरी है कि ऐसे मामलों की जांच की जाये.

उन्होंने आगे कहा, ‘ऐसे मामलों में जहां जांच करने के लिए प्रथम दृष्टया सामग्री (prima facie material) उपलब्ध हो, वहां जांच का आदेश देना बेहद ज़रूरी है… न्यायपालिका इस देश की सर्वोच्च संस्था है, लोग इस पर सबसे ज़्यादा भरोसा करते हैं. इस संस्था या इससे जुड़े किसी भी व्यक्ति के किसी गलत काम में लिप्त होने पर बात होनी चाहिए.

इतना ही नही जस्टिस शाह के अलावा अरुण शौरी ने भी जांच को ज़रूरी बताया है. उनके पिता एचडी शौरी ने जनहित याचिकाओं को माध्यम से लगातार सामाजिक बदलाव किए हैं.

बार एसोसिएशन का बिगुल

उधर  लातूर बार एसोसिएशन ने शुक्रवार को सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले को देख रहे सीबीआई न्यायाधीश बृजगोपाल लोया की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत की जांच करने के लिए प्रस्ताव पास किया है। इस मामले में मुख्य आरोपी अमित शाह थे।

बता दें, कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामलें की कार्रवाई गुजरात से बाहर करने का आदेश दिया था जिसके बाद ये मामला सीबीआई अदालत में आया। यहाँ इस मामले को देख रहे पहले न्यायाधीश उत्पत ने अमित शाह को मामले की कार्रवाई में उपस्थित न होने को लेकर फटकार लगाई थी। लेकिन अगली तारीख से पहले ही उनका ट्रान्सफर हो गया।

इसके बाद बृजगोपाल लोया आये, उन्होंने भी अमित शाह के उपस्थित न होने पर सवाल उठाए और सुनवाई की तारिख 15 दिसम्बर 2014 तय की लेकिन 1 दिसम्बर को ही उनकी मौत हो गई। इसके बाद न्यायधीश एमबी गोसवी आये, जिन्होंने दिसम्बर 2014 के अंत में ही अमित शाह को इस मामले में बरी कर दिया।

हाल में दिवंगत न्यायधीश लोया के परिवार वालों ने ‘द कारवां’ पत्रिका को दिए इन्टरव्यू में कहा है कि उन्हें ये शक है कि बीजे लोया की हत्या हुई थी। उन्होंने ये भी बताया है कि उस मामले के दौरान बीजे लोया को 100 करोड़ की रिश्वत के एवज़ में आरोपियों के पक्ष में फैसला देने का ऑफर मिला था।

लातूर बार एसोसिएशन के सचिव शेयर्ड इंगले ने ‘मुंबई मिरर’ के साथ से बातचीत करते हुए कहा, “हमने शुक्रवार को आयोजित हमारे सामान्य निकाय बैठक में इस प्रस्ताव को पारित करते हुए कहा था कि लोया की मौत की सीबीआई जांच बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की देखरेख में होनी चाहिए। ”