पढ़ लिखकर भी पीछे ही रहेंगे भारत के बच्चे, देश भी पीछे ही रहेगा ! ये है वजह

भारत जैसे विकासशील देशों के बच्चे बड़े होने पर जितना कमा सकते हैं उससे 26 प्रतिशत कम कमाएंगे. और इसका असर देशों के विकास पर भी होगा.

वैज्ञानिकों ने एक अनुमान लगाया है कि बेहद कम और मझली आय वाले जो देश बच्चों के विकास पर खर्च नहीं कर रहे हैं उन्हें स्वास्थ्य सेवाओं पर दो से तीन गुना ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भ ठहरने से लेकर जीवन के पहले कुछ साल मस्तिष्क के विकास के लिए बेहद जरूरी होते हैं. इस बारे में जानीमानी शोध पत्रिका लांसेट में एक अध्ययन छपा है. इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कम शैक्षिक विकास, खराब स्वास्थ्य और कम आय से गरीबी का संबंध दिखाया है.

2010 में जमा किए गए डाटा के आधार पर यह अध्ययन बताता है कि गरीब देशों के 5 साल से कम उम्र के लगभग 25 करोड़ यानी 43 फीसदी बच्चे अपनी पूरी योग्यता को कभी हासिल नहीं कर पाएंगे. 2004 में ऐसे बच्चों की संख्या करीब 28 करोड़ थी. इन बच्चों के पिछड़ने की वजह कुपोषण, साफ-सफाई की कमी, संक्रमण और शुरुआती सालों में उत्साहवर्द्धन का अभाव होगा.

सब सहारा इलाके के अफ्रीकी देशों में दो तिहाई बच्चे खराब विकास के खतरे में हैं. दक्षिण एशिया में ऐसे बच्चों की संख्या 65 फीसदी है. कैरेबिया और दक्षिण अमेरिका में 18 फीसदी बच्चे ऐसे खतरे में बड़े हो रहे हैं. सबसे ज्यादा प्रभाव लाइबेरिया, जाम्बिया, डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कोंगो, बुरुंडी, नाइजर और मलावी के बच्चों पर पड़ेगा.

इसी साल वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष जिम योंग किम ने चेतावनी दी थी कि बच्चों के विकास पर उचित ध्यान ना दिया जाना एक बहुत बड़ी विपदा है जिसके बारे में बात ही नहीं हो रही है. उन्होंने कहा कि जो देश बच्चों के विकास पर खर्च नहीं कर रहे हैं वे पीछे छूट जाएंगे क्योंकि भविष्य में डिजिटल दुनिया बहुत उलझनों भरी होगी. ऐसी दुनिया में जिस तरह की मानसिक क्षमताओं की जरूरत होगी, इन देशों के बच्चे वैसी क्षमताओं तक पहुंच ही नहीं पाएंगे.

बाल्कान रूट बंद हो गया है. इसका फैसला स्लोवेनिया, सर्बिया और क्रोएशिया ने किया. उत्तरी ग्रीस के इडोमेनी शहर में 10,000 शरणार्थी फंस गए हैं जो अमानवीय परिस्थितियों में रह रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संस्था के अनुसार कैंप में रहने वाले लोगों में आधे बच्चे हैं.

लांसेट में छपे अध्ययन के शोधकर्ता इस बात पर जोर देते हैं कि स्कूल-पूर्व शिक्षा, बच्चों की देखभाल के लिए माता-पिता को छुट्टी, मां का दूध उपलब्ध कराने को बढ़ावा और गरीबी से बाहर लाने के लिए अच्छी न्यूनतम मजदूरी तय करना भविष्य में विकास के लिए बेहद आवश्यक तत्व हैं. स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के प्रोफेसर गैरी डार्मश्टाट कहते हैं, “हमारा आर्थिक विश्लेषण दिखाता है कि ये कदम ना उठाने की कीमत कितनी ज्यादा है. कई देशों में तो यह कीमत उनके स्वास्थ्य खर्च से कहीं ज्यादा है.” डार्मश्टाट कहते हैं कि बच्चों की देखभाल पर खर्च एक समझदारी भरा निवेश है और हर देश को इसे अपनी प्राथमिकताओं में लाना चाहिए.

जून महीने में भी ऐसा ही एक अध्ययन हार्वर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने किया था. इस अध्ययन का अनुमान है कि विकासशील देशों में 2016 में पैदा हुए बच्चों की कमाई में 177 अरब का घाटा होगा क्योंकि उनका शीरिरक विकास पूरी तरह नहीं हो पाएगा.

वीके/एमजे (रॉयटर्स)

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