बिना मांग पूरी हुए ही किसानों ने अचानक आधी रात को आंदोलन वापस लिया, सभी को अचरज

दिल्ली में चल रहा किसानों का आंदोलन अचानक , आश्चर्यजनक ढंग से, बिना किसी मांग के पूरा हुए, किसी भी दबाव के बगैर अचानक आधी रात को खत्म हो गया, सरकार ने किसानों को दिल्ली में घुसने की इजाजत दी. उसके बाद किसानघाट की जगह किसान चौधरी चरण सिंह की समाधि तक पहुंचे और वापस लौट आए. खास बात ये है कि किसान नेता भी कह रहे हैं कि उनकी कोई मांग पूरी नहीं हुई.  भारतीय किसान यूनियन अध्यक्ष नरेश टिकैत ने कहा कि किसान घाट पर फूल चढ़ाकर हम अपना आंदोलन खत्म कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह सरकार किसान विरोधी है और हमारी कोई भी मांग पूरी नहीं हुई हैं. साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि अब आंदोलनकारी किसान अपने-अपने घरों की ओर लौट रहे हैं.

बड़ी बात ये हैं कि जब मांग पूरी नहीं हुई तो घेराबंदी अचानक आधीरात को खत्म करके किसान क्यों लौट गए. वो भी तब जबकि पूरा विपक्ष किसानों के समर्थन में खड़ा था. सोशल मीडिया पर किसानों के पक्ष में माहौल था. और गांधी जयंती पर किसानों पर पुलिस का हमला ठीक नहीं माना जा रहा था.

उधर दिल्ली वालों के नज़रिए से देखें तो आंदोलन खत्म होने के बाद ट्रैफिक नॉर्मल हो गया है. NH24 और मेरठ एक्सप्रेस वे पर अब ट्रैफिक पहले की तरह सामान्य हो गया है. किसी को भी कहीं से घूमकर जाने की ज़रूरत नहीं है.

दिल्ली में दाखिल होने से रोके जाने पर किसानों के प्रतिनिधि मंडल ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह से भी मुलाकात की. सरकार ने किसानों की कुछ मांगें मानने पर सहमति जताई थी और कुछ के लिए समय मांगा था. बाद में किसानों ने अपनी मांगों के संबंध में सरकार की ओर से दिए गए आश्वासनों पर भी भरोसा करने से इनकार कर दिया.

इन मांगों का क्या होगा ?

किसान सबसे पहले अपने लिए कर्जमाफी चाहते हैं लेकिन इस मांग को सरकार ने वित्तीय मामला कहकर फिलहाल के लिए लटका दिया है. इसके अलावा किसानों ने सिंचाई के लिए सस्ती बिजली और पिछले साल से बकाया गन्ने की फसल का भुगतान करने की मांग की थी. किसान ये भी चाहते हैं कि 60 साल की उम्र पार करने वाले किसानों के लिए पेंशन दी जाए. एक प्रमुख मांग जल्द से जल्द स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट लागू करने को लेकर भी है, इसमें कृषि क्षेत्र में बड़े सुधारों की सिफारिश की गई है.

कर्ज के बोझ तले दबे और खुदकुशी करने वाले किसानों के परिजनों के लिए सरकारी नौकरी देने की मांग भी की गई है. इसके अलावा मृतक किसानों के परिवारों के लिए घरों भी मांगा गया.

किसान संगठनों का कहना है कि सरकार ने फसलों के लिए डेढ़ गुना कीमत की घोषणा तो कर दी लेकिन खरीद तब शुरू होती है जब उपज बिक गई होती है, इसीलिए फसल का उचित मूल्य किसानों को मिलना चाहिए. किसानों ने डीजल के दाम घटाने से लेकर पाबंदी झेल रहे 10 साल पुराने ट्रैक्टर को फिर से इजाजत दिए जाने की मांग भी सरकार से की है.

विपक्ष का सरकार पर हमला

किसानों के खिलाफ बलपूर्वक कार्रवाई को लेकर विपक्ष ने केंद्र की मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा. कांग्रेस अध्यक्ष ने इस मुद्दे पर ट्वीट करते हुए लिखा, ”विश्व अहिंसा दिवस पर BJP का दो-वर्षीय गांधी जयंती समारोह शांतिपूर्वक दिल्ली आ रहे किसानों की बर्बर पिटाई से शुरू हुआ. अब किसान देश की राजधानी आकर अपना दर्द भी नहीं सुना सकते”. कांग्रेस के अलावा सपा प्रमुख अखिलेश यादव, सीपीएम नेता सीताराम येचुरी यहां तक कि सरकार की सहयोगी जेडीयू ने पुलिस की इस कार्रवाई का विरोध किया.

विपक्ष का कहना है कि गांधी जयंती के अवसर पर किसान शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करने के लिए राजघाट जाना चाहते थे. वहीं पुलिस का कहना है कि उन्होंने भीड़ को तितर-बितर करने और दिल्ली में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए हल्का बल प्रयोग किया है.

किसानों की 200 किमी लंबी यात्रा

किसानों ने बीते 23 सितंबर को हरिद्वार से 200 किलोमीटर से ज्यादा लंबी ये पदयात्रा शुरू की थी. सैकड़ों ट्रैक्टरों में सवार होकर आए किसानों में कुछ महिलाएं और बुजुर्ग भी शामिल थे, जिन्हें पुलिस की कार्रवाई में काफी चोट भी आई है. दिल्ली पुलिस ने प्रदर्शनकारी किसानों को रोकने के लिए तीन हजार से ज्यादा कर्मियों को तैनात किया था. किसानों के प्रदर्शन के चलते बुधवार को गाजियाबाद में स्कूल-कॉलेज भी बंद रखे गए हैं.

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