नीरव मोदी के सामने झुके क्यों रहते थे बीजेपी के सीएम ? नीरव को खुश करने ऑस्ट्रेलिया तक गए?

रायपुर :  नीरव मोदी पर सिर्फ पंजाब नेशनल बैंक मेहरबान नहीं था . बीजेपी के मुख्यमंत्री उस पर निहाल थे. हालात ये कि नीरव मोदी को खुश करने के लिए मुख्यमंत्री तरह तरह की मेहरबानियां और उजरत उसके सामने पेश किया करते थे. छत्तीस गढ़ के सीएम रमन सिंह नीरव मोदी को खुश करने के लिए सारी हदें पार कर गए.

पहले बात करते हैं रमन सिंह की . छत्तीस गढ़ खबर नाम की बैवसाइट ने बेहद तफ्सील से इस की पड़ताल की है. मुताबिक रमन सिंह नीरव मोदी की पार्टनर कंपनी को मनाने खुद ऑस्ट्रेलिया गए. ये कंपनी पहले छत्तीसगढ़ में काम कर चुकी थी. जब वो अपना बोरिया बिस्तर समेट कर चली गई तो रमन सिंह बाकायदा ऑस्ट्रेलिया गए. निवेश के नाम पर ऑस्ट्रेलिया गए रमन सिंह ने नीरव मोदी की कंपनी फायर स्टोन की पार्टनर कंपनी रियो टिंटों के अफसरों से मुलाकात की और उन्हें निवेश के लिए बाकायदा कई पेशकश भी कीं. इस कंपनी पर कई आरोप भी लगे थे और वो छत्तीसगढ़ से अपना बोरिया बिस्तर समेटकर भाग गई थी. उस पर कई गंभीर आरोप भी थे.

खुद सरकारी विज्ञप्ति में इसे उपलब्धि की तरह बताया गया विज्ञप्ति के अनुसार मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने ऑस्ट्रेलिया दौरे के दौरान छत्तीसगढ़ सरकार के प्रतिनिधिमंडल के साथ रियो टिंटो के मुख्य सलाहकार जॉनथन रोज से मुलाकात की. श्री रोज से मुलाकत के दौरान मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह ने उन्हें बताया कि छत्तीसगढ़ खनिज संसाधनों से संपन्न राज्य है. इस राज्य में तथा ऑस्ट्रेलिया में बहुत सी समानताएं हैं. श्री रोज ने मुख्यमंत्री को बताया कि छत्तीसगढ़ के इको सिस्टम के अध्ययन के लिए रियो टिंटो अपने खनन विशेषज्ञों की टीम भेजेगी और खनन क्षेत्र में निवेश की संभावनाओं का पता लगाएगी. उन्होंने कहा कि रियो टिंटो भी छत्तीसगढ़ यात्रा के दौरान वहां की स्थानीय खनन कंपनियों से जुड़ना चाहती है.

लेकिन दिलचस्प ये है कि रियो टिंटो पिछले दो दशकों से छत्तीसगढ़ में काम करती रही है. बस्तर की खदानें उसकी नजर में रही हैं और अविभाजित मध्यप्रदेश में भी उसने लगातार यहां के हीरा खदानों पर कब्जा करने की कोशिश की थी. 2002 में भी छत्तीसगढ़ सरकार ने डी बियर्स और रियो टिंटो समेत 6 कंपनियों को हीरा और सोने की खदानों के पूर्वेक्षण की अनुमति दी थी. उस समय कुल 61 कंपनियों ने इस काम के लिये आवेदन दिया था. लेकिन इसके बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया.

17 अप्रैल 2012 को आस्ट्रेलिया में जारी रियो टिंटो की 26 पन्नों की एक विज्ञप्ति में दावा किया गया कि छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में हीरा और किम्बरलैटिक के लिये काम शुरु हुआ और इसके नमूने लिये गये.

छत्तीसगढ़ सरकार के एक दस्तावेज़ की मानें तो 26 जुलाई 2010 को छत्तीसगढ़ सरकार ने हीरा, सोना, तांबा, लीड, चांदी, जिंक जैसी चीजों के सर्वेक्षण का काम रियो-टिंटो को सौंपा था. कंपनी को रायपुर, बिलासपुर और जांजगीर-चांपा के 2200 वर्ग किलोमीटर के इलाके में सर्वेक्षण का जिम्मा दिया गया था. इसी तरह 5 दिसंबर 2011 को इसी रियो टिंटो को इन्हीं कामों के लिये रायपुर, बिलासपुर, जांजगीर-चांपा और रायगढ़ में अनुमति प्रदान की गई.

यहां तक कि इस कंपनी ने छत्तीसगढ़ सरकार से बस्तर में भी हीरा के सर्वेक्षण की अनुमति मांगी थी. रियो टिंटो के भारत में प्रबंध निदेशक नीक सेनापति ने कहा था-हमें राज्य सरकार ने बस्तर में माओवादी हिंसा के मद्देनजर यहां अनुमति देने से मना कर दिया था और हमें कोई और इलाका तलाशने की सलाह दी गई.

ये वही कंपनी है, जिसने 2004 में मध्यप्रदेश में 2200 करोड़ की लागत वाली छतरपुर के बक्सवाहा, बंदर डायमंड प्रोजेक्ट में काम की शुरुआत की थी और फिर 2016 में अपना काम अधुरा छोड़ कर बोरिया-बिस्तर समेट लिया था. कंपनी पर भारी मात्रा में हेराफेरी के आरोप लगे थे. पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने कंपनी पर अनियमितताओं का आरोप लगाते हुये इसकी जांच की बात कही थी. यहां तक कि मंत्री लीना मेहेंदले ने भी कंपनी पर गंभीर आरोप लगाये थे.

इन सबों के बाद भी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री नीरव मोदी की पार्टनरशीप वाली बदनाम कंपनी को छत्तीसगढ़ में निवेश के लिये क्यों न्यौता दिया गया, इस पर अब सवाल उठ रहे हैं.