बाबरी अचानक नहीं गिरी, की गई थी पूरी साजिश, मैं हिंदू होने पर शर्मिंदा हूं, पढ़िए आंखों देखी


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नई दिल्ली: कट्टर हिंदुओं की भीड़ ने 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद को ढहा दिया था. इसके बाद हुए दंगों में करीब दो हज़ार लोग मारे गए थे.

इसके एक दिन पहले फोटोग्राफर प्रवीण जैन हिंदू कार्यकर्ताओं के उस समूह में शामिल हुए थे, जो मस्जिद ढहाने का पूर्वाभ्यास करने गए थे.

उन्होंने कुछ तस्वीरें शेयर की हैं और बताने की कोशिश की है कि उस दिन क्या-क्या हुआ था.

“मैं 4 दिसंबर, 1992 की शाम अयोध्या पहुंचा था. इस दिन शहर कोहरे में डूबा था.

मैं पायनियर अख़बार के लिए काम कर रहा था. अख़बार ने मुझे कारसेवकों की तस्वीर लेने वहां भेजा था. ऐसा माना जा रहा था कि ये लोग बाबरी मस्जिद पर जुटने वाले थे.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हज़ारों कार्यकर्ता वहां पहले से जुट चुके थे. उन लोगों ने योजना बनाई थी कि वो वहां मंदिर का निर्माण शुरू करेंगे. उन लोगों का मानना था कि इस जगह पर हिंदू देवता श्रीराम का जन्म हुआ था.

हालांकि उन लोगों ने वादा किया था कि वो लोग मस्जिद को नहीं छूएंगे और निर्माण की कोशिश सिर्फ़ नींव रखने के सांकेतिक धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित रखी जाएगी.

मैं एक भाजपा सासंद के संपर्क में था. उन्होंने मुझे बताया था कि 5 दिसंबर की सुबह मस्जिद ढहाने का अभ्यास किया जाएगा.

सासंद ने मुझसे कहा था, “मुझे मेरे अधिकारियों ने यह आदेश दिया है कि मैं यह सुनिश्चित करूं कि अभ्यास में किसी मीडियाकर्मी को घुसने न दिया जाए, लेकिन आप मेरे ख़ास दोस्त हैं इसलिए मैं आपको यह बता रहा हूं.”

सिर पर भगवा कपड़ा बांधकर, मेरी जैकेट पर विशेष प्रवेश बैज लगाकर एक कार्यकर्ता की तरह मुझे एक मैदान में ले जाया गया, जहां हज़ारों कार्यकर्ता ऐसे ही वेश में मौजूद थे. यह मैदान मस्जिद से कुछ दूरी पर था, जिसे विशेष बैज पहने कार्यकर्ताओं ने घेर रखा था.

वहां मुझे पदाधिकारी ने कहा, “यही एक तरीका है जिससे आप अभ्यास की तस्वीरें ले सकते हैं. मेरे साथ खड़े रहिएगा और कार्यकर्ताओं की तरह नारे लगाइएगा. इस तरह आप सुरक्षित भी रह सकते हैं.”

एक बलवान आदमी मेरे सामने खड़ा हो गया और कैमरा दूर रखने का इशारा किया. मैं उन्हें अपना बैज दिखाया और दूसरे कार्यकर्ताओं की तरह तेज़ आवाज़ में नारे लगाने लगा. उसने सिर हिलाया और मुझे दूसरे लोगों के एक समूह के साथ खड़े रहने का इशारा किया.

‘चेहरा ढंके हुए थे नेता’

मैंने अपना कैमरा निकाला और मेरे सामने जो घटना घट रही थी उसकी तस्वीरें उतारने लगा.

लोग विभिन्न तरह के हथियार से एक जमीन का टीला गिराने लगें. सब कुछ तय तरीके से हो रहा था. वहां सिर्फ कार्यकर्ता ही नहीं, पेशेवर भी थे जो ये बात जानते थे कि एक इमारत किस तरह गिराई जाती है.

2009 में लिब्राहन आयोग का गठन किया गया, जिन्होंने ये टिप्पणी कीः

“आयोग के सामने यह दृढ़ता से कहा गया कि अभ्यास विवादित ढांचे को गिराने लिए किया गया था. कुछ फोटोग्राफ आयोग के सामने प्रस्तुत किए गए.”

तस्वीर में भीड़ में एक व्यक्ति कैद हुए थे, जिन्होंने अपना चेहरा रुमाल से ढंक रखा था और वो कार्यकर्ताओं को आदेश दे रहे थे.

वो दक्षिणपंथी पार्टी के नेता लग रहे थे और अपनी पहचान बताना नहीं चाहते थे. टीले को सफलतापूर्वक गिरा दिया गया था. कार्यकर्ता ने तेज़ आवाज़ में इसका स्वागत किया.

पत्रकारों पर हमला

मैंने अपने कैमरे को जैकेट में छिपा लिया और उस जगह से निकल गया. मैं उत्साहित था कि मैं अकेला पत्रकार हूं, जिसने पूरे घटनाक्रम को आंखों से देखा और उसकी तस्वीरें उतारी हैं.

अगले दिन मैं अन्य पत्रकारों के साथ एक इमारत के चौथी मंजिल पर खड़ा था.

हम लोग मस्जिद और मंच की तरफ देख रहे थे, जहां विश्व हिंदू परिषद और भाजपा के बड़े नेता करीब देढ़ लाख कार्यकर्ताओं के साथ रैली कर रहे थे.

पुलिसकर्मी भी वहां नारे लगा रहे थे. दोपहर बाद भीड़ हिंसक हो गई और मस्जिद को सुरक्षा प्रदान कर रहे पुलिस और कार्यकर्ताओं से भिड़ गई.

कुछ लोग इमारत की चौथी मंजिल पर चढ़ गए और पत्रकारों पर हमला बोल दिया. मस्जिद ढहाने का प्रमाण न रहे, इसके लिए कैमरे तोड़ दिए.

कुछ घंटों में मज्सिद पूरी तरह ढह गई. मैं अपने होटल की तरफ उतनी तेज़ भागा, जितने मेरे पैर भाग सकते थे.

दंगे की शुरुआत हो गई थी. मैंने मदद के लिए पुलिसवालों की तरफ देखा. लोग दुकान और घरों के दरवाज़े बंद करने लगे थे.

जिस दिन मस्जिद ढहाई गई थी, उस दिन मुझे हिंदू होने पर शर्मिंदगी महसूस हो रही थी.

मुझे एक प्रत्यक्षदर्शी के तौर पर लिब्राहन आयोग के समक्ष पेश किया गया था और आज भी सीबीआई बुलावा भेजती है.

मामले के 25 साल बाद भी इसके लिए ज़िम्मेदार लोगों को सज़ा नहीं मिली है.

प्रवीण जैन इंडियन एक्सप्रेस में कंसल्टेंट फोटोग्राफर हैं. उनसे अनसुइया बसु ने बीबीसी के लिए बात की. लेख बीबीसी से साभार