सबसे पहले मस्जिद पर हथौड़ा चलाने वालों ने बदला धर्म, हो गए मुसलमान

नई दिल्ली : 6 दिसंबर, 2017 को अयोध्‍या में बाबरी मस्जिद विध्‍वंस के 25 साल पूरे हो गए.  उस दिन ढांचा ढहाने में शामिल रहे कुछ पूर्व कारसेवकों को अपने किये पर अफसोस है. इनमें से तीन ने इस्‍लाम कबूल लिया है. डीएनए की रिपोर्ट के अनुसार, पानीपत के बलबीर सिंह तब शिव सेना के सदस्‍य थे. वह 6 दिसंबर, 1992 को मस्जिद ढहाने चढ़े थे. उनके साथ रहे योगेंद्र पाल सिंह ने भी बाद में इस्‍लाम अपना लिया. अब बलबीर को मोहम्‍मद आमिर और योगेंद्र को मोहम्‍मद उमर के नाम से जाना जाता है. दोनों ने कसम खाई है कि जो उन्‍होंने 6 दिसंबर को किया, उसका प्रायश्चित करने के लिए वे 100 मस्जिदों का निर्माण या मरम्‍मत करवाएंगे. हालांकि अभी तक दोनों ने 50 मस्जिदों के निर्माण व मरम्‍मत में सहयोग किया है.

बलबीर (आमिर) को बाबरी मस्जिद का गुंबद तोड़ने वाले पहले कारसेवक के तौर पर जाना जाता है. इसके बाद उन्‍हें पानीपत में ‘हीरो’ जैसा स्‍वागत मिला था. वह अयोध्‍या से दो ईंटें लेकर आए थे जो अभी भी शिव सेना कार्यालय में रखी हैं. जब बलबीर (आमिर) मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना कलीम सिद्दीकी को मारने के लिए देवबंद में थे, तब उनका मन बदल गया. मौलाना की धार्मिक बातें सुनकर बलबीर ने इस्‍लाम कबूलने का फैसला किया. हालांकि यह इतना आसान नहीं था. आमिर को पानीपत छोड़कर हैदराबाद में बसना पड़ा, जहां उन्‍होंने निकाह किया. अब वह इस्‍लाम की शिक्षा देने के लिए स्‍कूल भी चलाते हैं.

सिर्फ बलबीर और योगेंद्र ही नहीं, अन्‍य कारसेवकों ने भी शर्मिंदगी और ग्‍लानि दूर करने के लिए जो बन पड़ा, वो किया. अयोध्‍या में बजरंग दल के नेता रहे शिव प्रसाद भी उन्‍हीं में से एक हैं. शिव ने करीब चार हजार कारसेवकों को खुद ट्रेनिंग दी थी जिन्‍होंने बाद में बाबरी मस्जिद ढहाई. साल भर बाद ही प्रसाद डिप्रेशन में चले गए. उन्‍होंने मनोचिकित्‍सकों, तांत्रिकों, संतों को दिखाया मगर शांति नहीं मिली. अगले पांच साल एकांत में बिताने के बाद वह नौकरी के लिए 1999 में शारजाह चले गउ. वहां उन्‍होंने इस्‍लाम कबूल कर लिया और मोहम्‍मद मुस्‍तफा बन गए.(सौ.-जनसत्ता)