कठपुतली मर न जाए इसलिए एक हो गया नोएडा


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नोएडा : नोएडा लोकमंच अपने सांस्कृतिक प्रकल्प पहला कदम संस्कृति की ओर. अपने प्रोजेक्ट के माध्यम से विलुप्त होती प्राचीन परम्पराओ और संस्कारों के बारे मे युवा पीढ़ी को जागरूक करने के लिए तीसरी प्रस्तुति के रूप में कठपुतली कला को पेश किया. राजस्थानी लोकगीत पर नाचती कठपुतलियां का संचालन रमाया गुप ने किया, ये आयोजन सैक्टर 38ए स्थित गार्डन गललेरिया माल में किया गया.

इस अवसर पर नोएडा लोकमंच के महासचिव महेश सक्सेना, पहला कदम संस्कृति की ओर  के प्रोजेक्ट चेयरमैन राज्यसभा के पूर्व महासचिव योगेंद्र नारायण ने कहा की किसी सांस्कृतिक मेले में इस तरह के राजस्थानी लोकगीत पर नाचती कठपुतलियां बरबस ही ध्यान खींच लेती हैं, पर मनोरंजन के साथ शिक्षा का माध्यम रहा कठपुतली का खेल आज अपनी पहचान बचाए रखने की जद्दोजहद कर रहा है. तेजी से विलुप्त होती कला को युवा पीढ़ी को जागरूक करने के लिए नोएडा लोकमंच अपने सांस्कृतिक प्रकल्प पहला कदम संस्कृति की ओर अपनी तीसरी तीसरी प्रस्तुति के रूप में पेश किया गया है.

प्रोजेक्ट चेयरमैन राज्यसभा के पूर्व महासचिव योगेंद्र नारायण ने कहा की कठपुतली लोकप्रियता घटती जा रही है और पीढ़ी दर पीढ़ी इस कला के वाहक अपने परिवार का जीवनयापन वसर करने लिए दूसरे व्यवसायों की ओर बढ़ते जा रहे हैं. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि ये आज भी मनोरंजन के रोचक साधनों में सर्वोउत्कृष्ट स्थान रखता है.

नोएडा लोकमंच के महासचिव महेश सक्सेना के कहा की नोएडा लोकमंच अपने सांस्कृतिक प्रकल्प पहला कदम संस्कृति की ओर नोएडा में सांस्कृतिक जागृति का जो प्रयास किया है उससे नोएडा में जितने प्रकार की कला जुड़े लोग और कलाकार है जुड़ना शुरू हो गए है. इस माह के अंत में पहला कदम संस्कृति की एक चित्र कला प्रदर्शनी का आयोजन करने जा रहा है. इस अवसर पर नोएडा लोकमंच के सचिव रंगकर्मी आरएन श्रीवास्तव, ब्रम्हप्रकाश,  मुकुल बाजपेई  ज्योति श्रीवास्तव, लायन मानसिंह, एमएन शर्मा, पारिख, मूलचन्द अवाना आदि मौजूद थे.

 

कठपुतली कला का परिचय  :

कठपुतली विश्व के प्राचीनतम  रंगमंच  पर खेला जानेवाले मनोरंजक कार्यक्रम में से एक है कठपुतलियों को विभिन्न प्रकार की गुड्डे गुड़ियों, जोकर आदि पात्रों के रूप में बनाया जाता है इसका नाम कठपुतली इस कारण पड़ा क्योंकि पूर्व में भी लकड़ी अर्थात काष्ठ से से बनाया जाता था इस प्रकार काष्ठ से बनी पुतली का नाम कठपुतली पड़ा. मूलतः राजस्थान के नागौर जिले से आने वाले भाट समुदाय को परंपरागत भारतीय कठपुतली का जनक माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि यही लोग कठपुतलियों को पश्चिम बंगाल और देश के दूसरे हिस्सों तक लेकर गए थे. छह महीनों तक शहरों और गांवों में घूम-घूमकर ये लोग राधा-कृष्ण की प्रेम गाथा या शाहजहां के समय के राजा अमर सिंह राठौड़ की कहानियां आमजन तक पहुंचाते थे. कठपुतली का खेल आज अपनी पहचान बचाए रखने की जद्दोजहद कर रहा है.

 

 

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