अमेरिकी वैज्ञानिकों का दावा, मनुष्यों ने 4000 साल पहले बनाया था रामसेतु, कुदरती नहीं

नई दिल्ली : इस खबर से एक बार फिर हिंदू राष्ट्रवादी उत्साहित हो सकते हैं. खबर कहतीहै कि  भारत और श्रीलंका के बीच स्थित प्राचीन ‘एडम्स ब्रिज’ यानी राम सेतु इंसानों ने बनाया था ये कुदरती रचना नहीं है. अब इसे दुनिया भर के वैज्ञानिक भी मानने को मजबूर हो गए हैं. जाहिर बात है कि खुद मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट में कह चुकी है कि भगवान राम सिर्फ कल्पना थे और उनके होने का ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है . लेकिन अब संघ का एक धड़ा राम के अस्तित्व को लेकर नया अभियान चलाना शरू कर देगा.

 

दर एसल अमेरिकी पुरातत्ववेत्ताओं ने इन्फोटेनमेंट चैनल डिस्कवरी के एक शो के प्रोमो में यह दावा कर दिया है कि वहां बना राम सेतु किसी ने बनाया था अपने आप नहीं बना. यह शो बुधवार को सुबह 7.30 बजे दिखाया जाएगा. डिस्कवरी चैनल के प्रोमो को सोशल मीडिया पर पिछले 16 घंटों में 11 लाख से अधिक लोग देख चुके हैं. इस कार्यक्रम में सैटेलाइट चित्र के जरिए रामसेतु की अंतरिक्ष से नजर आने वाली तस्वीर दिखाई गई है.

वैज्ञानिकों का मानना है कि सैटेलाइट में नजर आने वाली छिछले या सपाट चूना पत्थर हैं. 83 किलोमीटर लंबे गहरे इस जल क्षेत्र में चूना पत्थर की चट्टानों का नेटवर्क दरअसल मानव निर्मित है.

 

अमेरिका की इंडियाना यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ नार्थवेस्ट, यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो और सर्दन ओरीगन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया है कि बलुई परत भले ही प्राकृतिक हों, लेकिन उसके ऊपर बिछाए गए विशाल चूना पत्थर कतई प्रकृति की देन नहीं हैं. यह कहीं और से लाए गए हैं. कार्यक्रम में बताया गया है कि पुल की चट्टानें सात हजार साल पुरानी हैं, जबकि उस पर बिछी बालू की परत महज चार हजार साल पुरानी है.

सर्दन ओरीगन यूनिवर्सिटी की इतिहास की पुरातत्ववेत्ता चेल्सिया रोज ने कहा कि बालू पर बिछी चट्टानें बालू को कम पुराना करती हैं. चैनल इस बात का समर्थन करता है कि विशाल पुल बेहद प्राचीन होने के बावजूद मानव निर्मित है. सोशल मीडिया में तहलका मचा रही इस रिपोर्ट पर एक ट्विटर यूजर ने कहा है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) इस मामले को सुलझाने के लिए क्यों कुछ नहीं करता.

 

हाल में भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद ने भी इस जगह पर पानी के अंदर रिसर्च करने की घोषणा की थी. उसकी रिपोर्ट भी नवंबर में आ जानी थी. लेकिन पुरातत्ववेत्ता और एएसआई के पूर्व निदेशक आलोक त्रिपाठी ने कहा कि अभी काम शुरू होना बाकी है. इस योजना का प्रस्ताव करने वाले त्रिपाठी कहते हैं कि अभी फील्डवर्क ही नहीं किया गया है. इस प्रोजेक्ट को शुरू करने के लिए कुछ औपचारिकताओं को पूरा करना बाकी है.

दर असल महत्वाकांक्षी सेतुसमुद्रम नहर परियोजना के चलते रामसेतु के अस्तित्व पर ही संकट आ गया था. अति प्राचीन सेतु को नहर के लिए रोड़ा बताए जाते हुए इसकी चट्टानों को तोड़ने की तैयारी थी.

तत्कालीन यूपीए-1 सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया था कि इस बात के कोई सुबूत नहीं हैं कि रामसेतु कोई पूज्यनीय स्थल है. साथ ही सेतु को तोड़ने की इजाजत मांगी गई थी. बाद में कड़ी आलोचना के बीच तत्कालीन सरकार ने यह हलफनामा वापस ले लिया था. इस परियोजना की इसलिए भी कड़ी आलोचना हुई थी कि इससे हिंद महासागर की जैव विविधता प्रभावित होगी. हिंदूवादियों ने भी इसे धार्मिक भावनाओं पर हमला बताया था.