आज दिल्ली में कराई जा सकती है कृत्रिम बारिश, दिवाली के धुएं का यही तोड़ बचा

काम चलाऊ हवा भी 200 एक्यूआई तक ही होती है और दिवाली पर दिल्ली में एक्यूआई सीवियर की सीमा पार करके भी 1000 के पार पहुंच गया . दिवाली पर आतिशबाज़ी से जान लेवा हो गए वातावरण को ठीक करने के लिए अब यहां कृत्रिम बारिश करवाई जा रही है.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के प्रोजेक्ट पर आईआईटी कानपुर ये काम करेगा. आईआईटी केमिकल सॉल्यूशन के जरिए कृत्रिम बारिश कराकर हवा के जहरीले कणों की सघनता को कम कर देगा. इससे हवा सांस लेने के योग्य हो जाएगी.
आईआईटी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा केमिकल सॉल्यूशन तैयार किया है, जिससे बिना मौसम ही बारिश कराई जा सकती है. इसे कृत्रिम बारिश का नाम दिया गया है.

सीपीसीबी ने तैयार किया प्रोजेक्ट
सीपीसीबी ने बारिश का प्रोजेक्ट तैयार किया है. कृत्रिम बारिश को इसरो (इंडियन साइंस एंड रिसर्च आर्गेनाइजेशन) हवाई जहाज दे रहा है. आईएमडी (भारतीय मौसम विज्ञान केंद्र) ने पूरा डाटा आईआईटी कानपुर को उपलब्ध कराया है.
संस्थान के डिप्टी डायरेक्टर प्रो. मणींद्र अग्रवाल ने बताया कि टीम तैयार है. अनुकूल बादल और हवा मिलते ही दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराई जाएगी. संस्थान के निदेशक प्रो. अभय करंदीकर ने बताया कि इसके लिए वैज्ञानिक वैज्ञानिक तैयार हैं.

10 के बाद कभी भी कराई जा सकती बारिश
आईआईटी कानपुर को कृत्रिम बारिश के लिए बादल और हवा की जरूरत है. 10 नवंबर के बाद कभी भी बादल और हवा की स्थिति अनुकूल मिलते आईआईटी कृत्रिम बारिश करा देगा. संस्थान के डिप्टी डायरेक्टर और प्रोजेक्ट से जुड़े प्रो. मणींद्र अग्रवाल ने बताया कि आईएमडी (भारतीय मौसम विज्ञान केंद्र) के डाटा के अनुसार 10 नवंबर के बाद स्थिति अनुकूल होने की संभावना है.

देश की राजधानी दिल्ली में कृत्रिम बारिश का प्रयोग पहली बार होने जा रहा है. हालांकि इस तकनीक का प्रयोग चाइना, यूएस, इजरायल, साउथ अफ्रीका और जर्मनी जैसे देश कई बार कर चुके हैं. रूस तो ऐसा प्रयोग तीस साल पहले कर चुका है.

ऐसे होगी रसायनों से कृत्रिम बारिश
कृत्रिम बारिश चार से पांच चरणों में होती है. सबसे पहले रसायनों का प्रयोग करके क्षेत्र की हवा को वायुमंडल के सबसे ऊपरी हिस्से में भेजते हैं, जो बादलों का रूप ले लेती है. इसमें कैल्शियम ऑक्साइड, कैल्शियम क्लोराइड और यूरिया जैसे रसायन होते हैं जो नमी को सोखते हैं. वे कृत्रिम बादल हवा में मौजूद भाप को सोखने लगते हैं. इसमें अमोनियम नाइट्रेट, यूरिया आदि का प्रयोग होता है. इसमें बादलों में पानी की मात्रा बढ़ जाती है. इसके बाद कई और रसायनों के इस्तेमाल से कृत्रिम बारिश कराई जाती है. यह सारी प्रक्रिया हवाई जहाज से होती है.

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