योगी ने जानबूझकर हनुमान जी को बोला था दलित


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दलित विमर्ष पर योगी आदित्यनाथ पीछे हटने को तैयार नहीं है. वो आज फिर पटना गए और ऐसे मंदिर में पहुंचे जहां का पुजारी दलित है. उन्होंने वहां हनुमान जी को दलित भी कहा.

योगी आदित्यनाथ का हनुमान जी को दलित कहना न तो जुबान फिसलने का मामला है न ही तोड़ मरोड़ कर बयान पेश करने का केस. दरअसल ये बीजेपी की दलित राजनीति का नया पैंतरा है जिसके महानायक योगी आदित्यनाथ होंगे. आने वाले दिनों में योगी के दलित प्रेम से जुड़े कई और बयान आ सकते हैं और हो सकता है दलितों के मामले में बीजेपी और भी ज्यादा मुखर होकर सामने आए. जानकारों का कहना है कि बीजेपी का 2019 के लिए ये ट्रंप कार्ड है और पार्टी नाराज़ दलित और मुस्लिम समुदाय के वोट अपने पास लाने के लिए खेल रही है.

योगी आदित्यनाथ को दलित हित चिंतक बताने की रणनीति के पीछे पड़ी वजह है. दरअसल, योगी आदित्यनाथ का दलितों से ‘पुराना रिश्ता’ है! यहां तक कि गोरखनाथ मठ के मंदिर के मुख्य पुजारी कमलनाथ भी दलित हैं. योगी के बाद वो ही मंदिर की दूसरी बड़ी हस्ती हैं.

सिर्फ इतना ही नहीं योगी का मठ भी हमेशा से दलित हित रक्षक के तौर पर जाना जाता रहा है. योगी आदित्यनाथ उस नाथ संप्रदाय से आते हैं जो दलितों और आदिवासियों के साथ दोस्ताना रिश्ते रखता है. योगी के गुरु महंत अवैद्यनाथ भी दलितों और वनवासियों से जुड़े रहे हैं.

नाथ परंपरा के तहत योगी और उनका मठ लंबे समय से छुआछूत के खिलाफ काम कर रहे हैं. सीएम बनने के बाद उन्होंने दलित के घर खाना खाने का अभियान चलाता रहा है. मठ का मानना है कि हिंदू एकता के लिए दलितों को गले लगाना ज़रूरी है. योगी के मठ के ये सूत्र ध्यान देने वाले हैं. -‘अस्पृश्यता हिंदू समाज का अभिशाप है. धर्मशास्त्रों में इसके लिए कोई स्थान नहीं….’

‘गोरखनाथ पीठ की परंपरा के अनुसार योगी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में जनजागरण का अभियान चलाया था इसमें. सहभोज के माध्यम से छुआछूत पर हमले किए गए. इस कदम से भी बड़ी संख्या में दलित बीजेपी से जुड़े. गांव-गांव में सहभोज के माध्यम से ‘एक साथ बैठें-एक साथ खाएं’ मंत्र का उन्होंने उद्घोष किया.”

जानकारों का कहना है कि आदित्‍यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ ने दक्षिण भारत के मंदिरों में दलितों के प्रवेश को लेकर संघर्ष किया. जून 1993 में पटना के महावीर मंदिर में उन्‍होंने दलित संत सूर्यवंशी दास का अभिषेक कर पुजारी नियुक्‍त किया. इस पर विवाद भी हुआ लेकिन वे अड़े रहे. यही नहीं इसके बाद बनारस के डोम राजा ने उन्‍हें अपने घर खाने का चैलेंज दिया तो उन्‍होंने उनके घर पर जाकर संतों के साथ खाना भी खाया.

गोरखनाथ मंदिर का मत है कि “हरिजन भी हिंदू समाज के उसी उसी तरह से अभिन्न अंग हैं जिस तरह क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य, जैन, बौद्ध, सिख, आर्यसमाजी अथवा सनातनी लोग हैं. शास्त्रों में भेदभाव के लिए कोई स्थान नहीं है. यह हिंदू समाज के लिए आत्महत्या समान ही है.”

योगी आदित्यनाथ का वनटांगियों से भी खास लगाव है. सांसद रहते हुए योगी ने सड़क से संसद तक इनके अधिकारों की लड़ाई लड़ी. इन्हें नागरिक अधिकार देने का मामला संसद में उठाया. ज्यादातर वनटांगिया दलित और पिछड़े वर्ग से हैं. योगी 11 साल से उन्हीं के साथ दीपावली मनाते हैं.

बीजेपी के दलित प्रेम की वजह ये आंकड़े है जिनके कारण पार्टी को योगी को दलित मसीहा के तौर पर सामने लाना पड़ा. 2011 की जनगणना के मुताबिक, देश में 16.63 फीसदी अनुसूचित जाति और 8.6 फीसदी अनुसूचित जनजाति हैं. 150 से ज्यादा संसदीय सीटों पर एससी/एसटी का प्रभाव माना जाता है. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में 46,859 गांव ऐसे हैं जहां दलितों की आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है. 75,624 गांवों में उनकी आबादी 40 फीसदी से अधिक है. देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा की 84 सीटें एससी के लिए, जबकि 47 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. विधानसभाओं में 607 सीटें एससी और 554 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. इसलिए सबकी नजर दलित वोट बैंक पर लगी हुई है.

कांग्रेस को भी 2019 के लिए दलित और मुस्लिमों के साथ का ही भरोसा है. ज्यादातर जानकार मानते हैं कि दलित और मुस्लिम बीजेपी के साथ नहीं जाने वाले इसीलिए उसका हारना तय है. एससीएसटी एक्ट पर बीजेपी का कदम भी दलित वोट बैंक को अपनी तरफ खींचने की कोशिश ही था. ये ठीक वैसी कोशिश है जैसे तीन तलाक के ज़रिए मुस्लिम महिलाओं को अपनी तरफ खींचकर की गई थी.

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